Sunday, 2 June 2013

गड्वाली कविता

फिर बजला घुंगूरू
फिर अली बयार
फिर नयी टेहरी देखि
आली क्या पुराणी टेहरी की याद
फिर बजला घुंगूरू......

फिर लागला मेला
फिर कुअथिग्यर आला
फिर बिंदी चरखी मा बैठली
लोग पुँरानी टेहरी भुँली जला
फिर बजला घुंगूरू
फिर अली बयार
फिर नयी टेहरी देखि
आली क्या पुराणी टेहरी की याद

फिर सिंघुरियूं की दुकान सजाली
फिर बाजार मा भुला भुअली ज़ेलाबी खला
नयी टेहरी मा नान बोयाया लागला
जागरी दादा देवता जगाला
बूडया अखून आशू पुछकी
मीथै भुँली जाला
फिर बजला घुंगूरू
फिर अली बयार
फिर नयी टेहरी देखि
आली क्या पुराणी टेहरी की याद
डामा का बना मी टूटी
तुम्हार साथ मुझा से छुटी
प्रगति मा खूबा फल -फुला
दुनिया मा गढ़वाल नवा राखा
जख भी रयान राजी ख़ुशी रह्य
मीथे ना भुअली जयां
फिर बजला घुंगूरू
फिर अली बयार
फिर नयी टेहरी देखि
आली क्या पुराणी टेहरी की याद         

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