Wednesday, 21 August 2013


मंगतू दा की चिठि अपिरि gf कू

मेरी प्राण प्यारी

और म्यारा नौन्यालो की हूण वली ब्वे

प्रिये जो बात में गिचल नहीं बौल पाया वो में चिठ्ठी में लिख रहा हूँ

इस ख़त को ध्यान से पढना अर पेढ के नाक फूजी के फुंड मत धौल देना

आजकल तेरे ख्याल मेरे दिमाग में ऐसे चिपटे हुए हैं जैसे बच्चो की नाक पर माखे चिपटे रहते हैं

तेरे ख्याल मेरे बरमंड के गूदे को आटे की तरह ओल रहे हैं

जबसे तुमे देखा हैं कलेजे में ऐसे झाम्ज्याट पड़ रहा हैं जैसे कंडयाली के बुज्जे में रख दिया हो

अर आँखों में तिडवाल पड़ गयी हो ..

आजकल जने भी देखता हूँ तुमि तुम नज़र आते हो

ब्याली जंगल में गया था आर वख रिक बैठा था मुजे लगा की तुम अपनी जुल्फे खौल के बैठे हो

अर तुमारी लट समज कर मैंने उसकी पूछ खीच दी तुमारी कसम डार्लिंग उसने मुझे 154 kmph की रफ़्तार से अटगाया

इसलिए जब भी मुझे मिलना धौपेली बाँध के आना

ऐसा न हो की में तुम्हारी जुल्फे देखकर अटक जाऊ

क्योकि दूध का जला हुआ छाछ भी फूक फूक कर पीता हैं ................

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