Friday, 23 August 2013

नन्दा देवी राजजात (Nanda Devi Rajjat)



नन्दा देवी राजजात भारत के उत्तरांचल राज्य में होने वाली एक नन्दा देवी की एक धार्मिक यात्रा है। यह उत्तरांचल के कुछ सर्वाधिक प्रसिद्ध सांस्कृतिक आयोजनों में से एक है। यह लगभग १२ वर्षों के बाद आयोजित होती है। अन्तिम जात सन् २००१ में हुयी थी। अगली राजजात सन् २०१२ में होगी |
लोक इतिहास के अनुसार नन्दा गढ़वाल के राजाओं के साथ-साथ कुँमाऊ के कत्युरी राजवंश की ईष्टदेवी थी। ईष्टदेवी होने के कारण नन्दादेवी को राजराजेश्वरी कहकर सम्बोधित किया जाता है। नन्दादेवी को पार्वती की बहन के रुप में देखा जाता है परन्तु कहीं-कहीं नन्दादेवी को ही पार्वती का रुप माना गया है। नन्दा के अनेक नामों में प्रमुख हैं शिवा, सुनन्दा, शुभानन्दा, नन्दिनी। पूरे उत्तराँचल में समान रुप से पूजे जाने के कारण नन्दादेवी के समस्त प्रदेश में धार्मिक एकता के सूत्र के रुप में देखा गया है। रूपकुण्ड के नरकंकाल, बगुवावासा में स्थित आठवीं सदी की सिद्ध विनायक भगवान गणेश की काले पत्थर की मूर्ति आदि इस यात्रा की ऐतिहासिकता को सिद्ध करते हैं, साथ ही गढ़वाल के परंपरागत नन्दा जागरी (नन्दादेवी की गाथा गाने वाले) भी इस यात्रा की कहानी को बयॉं करते हैं। नन्दादेवी से जुडी जात (यात्रा) दो प्रकार की हैं। वार्षिक जात और राजजात। वार्षिक जात प्रतिवर्ष अगस्त-सितम्बर मॉह में होती है। जो कुरूड़ के नन्दा मन्दिर से शुरू होकर वेदनी कुण्ड तक जाती है और फिर लौट आती है, लेकिन राजजात 12 वर्ष या उससे अधिक समयांतराल में होती है। मान्यता के अनुसार देवी की यह ऐतिहासिक यात्रा चमोली के नौटीगाँव से शुरू होती है और कुरूड़ के मन्दिर से भी दशोली और बधॉण की डोलियॉं राजजात के लिए निकलती हैं। इस यात्रा में लगभग २५० किलोमीटर की दूरी, नौटी से होमकुण्ड तक पैदल करनी पड़ती है। इस दौरान घने जंगलों पथरीले मार्गों, दुर्गम चोटियों और बर्फीले पहाड़ों को पार करना पड़ता है।

अलग-अलग रास्तों से ये डोलियॉं यात्रा में मिलती है। इसके अलावा गाँव-गाँव से डोलियॉं और छतौलियॉं भी इस यात्रा में शामिल होती है। कुमाऊँ (कुमॉयू) से भी अल्मोडा, कटारमल और नैनीताल से डोलियॉं नन्दकेशरी में आकर राजजात में शामिल होती है। नौटी से शुरू हुई इस यात्रा का दूसरा पड़ाव इड़ा-बधाणीं है। फिर यात्रा लौठकर नौटी आती है। इसके बाद कासुंवा, सेम, कोटी, भगौती, कुलसारी, चैपडों, लोहाजंग, वाँण, बेदनी, पातर नचौणियाँ से विश्व-विख्यात रूपकुण्ड, शिला-समुद्र, होमकुण्ड से चनण्यॉंघट (चंदिन्याघाट), सुतोल से घाट होते हुए नन्दप्रयाग और फिर नौटी आकर यात्रा का चक्र पूरा होता है। यह दूरी करीब 280 किमी. है।


इस राजजात में चौसिंग्या खाडू़ (चार सींगों वाला भेड़) भी शामिल किया जाता है जोकि स्थानीय क्षेत्र में राजजात का समय आने के पूर्व ही पैदा हो जाता है, उसकी पीठ पर रखे गये दोतरफा थैले में श्रद्धालु गहने, श्रंगार-सामग्री व अन्य हल्की भैंट देवी के लिए रखते हैं, जोकि होमकुण्ड में पूजा होने के बाद आगे हिमालय की ओर प्रस्थान कर लेता है। लोगों की मान्यता है कि चौसिंग्या खाडू़ आगे बिकट हिमालय में जाकर लुप्त हो जाता है व नंदादेवी के क्षेत्र कैलाश में प्रवेश कर जाता है।


वर्ष 2000 में इस राजजात को व्यापक प्रचार मिला और देश-विदेश के हजारों लोग इसमें शामिल हुए थे। राजजात उत्तराखंड की समग्र संस्कृति को प्रस्तुत करता है। इसी लिये 26 जनवरी 2005 को उत्तरांचल राज्य की झांकी राजजात पर निकाली गई थी। पिछले कुछ वर्षों से पयर्टन विभाग द्वारा रूपकुण्ड महोत्व का आयोजन भी किया जा रहा है। स्थानीय लोगों ने इस यात्रा के सफल संचालन हेतु श्री नन्दादेवी राजजात समिति का गठन भी किया है। इसी समिति के तत्त्वाधान में नन्दादेवी राजजात का आयोजन किया जाता है। परम्परा के अनुसार वसन्त पंचमी के दिन यात्रा के आयोजन की घोषणा की जाती है। इसके पश्चात इसकी तैयारियों का सिलसिला आरम्भ होता है। इसमें नौटी के नौटियाल एवं कासुवा के कुवरों के अलावा अन्य सम्बन्धित पक्षों जैसे बधाण के १४ सयाने, चान्दपुर के १२ थोकी ब्राह्मण तथा अन्य पुजारियों के साथ-साथ जिला प्रशासन तथा केन्द्र एवं राज्य सरकार के विभिन्न विभागों द्वारा मिलकर कार्यक्रम की रुपरेखा तैयार कर यात्रा का निर्धारण किया जाता है।



मान्यताओं के अनुसार राजजात तब होती है जब देवी का दोष (प्रकोप) लगने के लक्षण दिखाई देते हैं। ध्याणी (विवाहित बेटी-बहन) भूमिया देवी ऊफराई की पूजा करती है इसे मौड़वी कहा जाता है। ध्याणीयां यात्रा निकालती है, जिसे डोल जातरा कहा जाता है। कासुंआ के कुंवर (राज वंशज) नौटी गाँव जाकर राजजात की मनौती करते हैं। कुंवर रिंगाल की छतोली (छतरी) और चौसिंग्या खाडू़ (चार सींगों वाला भेड़) लेकर आते हैं। चौसिंगा खाडू का जन्म लेना राजजात की एक खास बात है। नौटियाल और कुँवर लोग नन्दा के उपहार को चौसिंगा खाडू की पीठ पर होमकुण्ड तक ले जाते हैं। वहाँ से खाडू अकेला ही आगे बढ़ जाता है। खाडू के जन्म साथ ही विचित्र चमत्कारिक घटनाये शुरु हो जाती है। जिस गौशाला में यह जन्म लेता है उसी दिन से वहाँ शेर आना प्रारम्भ कर देता है और जब तक खाडू़ का मालिक उसे राजजात को अर्पित करने की मनौती नहीं रखता तब तक शेर लगातार आता ही रहता है।

राजजात के नाम पर जिन्दा सामन्तवाद - जयसिंह रावत- चार सींगों वाले मेंढे (चौसिंग्या खाडू) के नेतृत्व में चलने वाली दुनियां की दुर्गमतम्, जटिलतम और विशालतम् धार्मिक पैदल यात्राओं में सुमार नन्दा राजजात अगामी 29 अगस्त से शुरू होने जा रही है। बसन्त पंचमी के अवसर पर घोषित कार्यक्रम के अनुसार पूरे 19 दिन तक चलने के बाद यह यात्रा 16 सितम्बर को सम्पन्न होगी। इस हिमालयी महाकुम्भ में समय के साथ धार्मिक परम्पराएं तो बदलती रही हैं मगर सामन्ती परम्पराएं कब बदलेंगी, यह सवाल मुंह बायें खड़ा हो कर लोकतंत्रकामियों को चिढ़ाता जा रहा है। बद्रीनाथ के कपाटोद्घाटन की ही तरह चमोली गढ़वाल के कासुवा गांव के कुंवरों और नौटी गांव के उनके राजगुरू नौटियालों ने भी इस बसन्त पंचमी को नन्दादेवी राजजात के कार्यक्रम की घोषणा कर दी। कांसुवा गांव के ठाकुर स्वयं को सदियों तक गढ़वाल पर एकछत्र राज करने वाले पंवार वंश के एक राजा अजयपाल के छोटे भाई के वंशज मानते हैं और इसीलिये वे राजा के तौर पर इस हिमालयी धार्मिक पदयात्रा का नेतृत्व करने के साथ ही उसे अपना निजी कार्यक्रम मानते हैं। टिहरी राजशाही के वंशज भी बसन्त पंचमी के दिन हर साल बद्रीनाथ के कपाटोद्घाटन की तिथि तय करते हैं।
कुवरों और नौटियालों द्वारा घोषित कार्यक्रम के अनुसार यह यात्रा 29 अगस्त को नौटी से चेलगी और हिमालयी क्षेत्र में 19 पड़ावों के बाद आगामी 16 सितम्बर को वापस लौट जायेगी। इस जोखिमपूर्ण यात्रा के साक्षी बनने के लिये देश विदेश से लोग पहुंचते हैं। लेकिन हैरानी की बात यह है कि जिस कुरूड़ गांव के प्राचीन मंन्दिर से नन्दा देवी की डोली चलनी है उस मंदिर के पुजारियों और हकहुकूकधारियों को दूध की मक्खी की तरह अलग फेंका गया है। राज्य सरकार भी धार्मिक भावनाओं और प्राीन परम्पराओं के बजाय सामन्ती व्यवस्था के साथ दृढ़ता से खड़ी नजर आ रही है। राजजात के लिये उत्तराखण्ड सरकार सहित आयोजन समिति और अन्य सम्बन्धित पक्षों ने तैयारियां शुरू कर दी हैं। इसके साथ ही इस ऐतिहासिक यात्रा का नेतृत्व करने चौसिंग्या खाडू की तलाश भी शुरू हो गयी है। यात्रा से पहले इस तरह का विचित्र मेंढा चांदपुर और दशोली पट्टियों के गावों में से कहीं भी जन्म लेता रहा है। विशेष कारीगरी से बनीं रिंगाल की छंतोलियों, डोलियों और निशानों के साथ लगभग 200 स्थानीय देवी देवता इस महायात्रा में शामिल होते हैं।

प्राचीन प्रथानुसार जहां भी यात्रा का पड़ाव होता है उस गांव के लोग यात्रियों के लिये अपने घर खुले छोड़ कर स्वयं गोशालाओं या या अन्यत्र रात गुजारते हैं। समुद्रतल से 13200 फुट की उंचाई पर स्थित इस यात्रा के गन्तव्य होमकुण्ड के बाद रंग बिरंगे वस्त्रों से लिपटे इस मेंढे को अकेले ही कैलाश की ओर रवाना कर दिया जाता है। यात्रा के दौरान पूरे सोलहवें पड़ाव तक यह खाडू या मेंढा नन्दा देवी की रिंगाल से बनी छंतोली (छतरी) के पास ही रहता है। समुद्रतल से 3200 फुट से लेकर 17500 फुट की ऊंचाई क पहुंचने वाली यह 280 किमी लम्बी पदयात्रा 19 पड़ावों से गुजरती है। वाण यात्रा का अन्तिम गाँव है।
प्राचीन काल में इसके 22 पड़ाव होने के भी प्रमाण हैं। वाण से आगे की यात्रा दुर्गम होती हैं और साथ ही प्रतिबंधित एवं निषेधात्मक भी हो जाती है। आयोजन समिति के सचिव और राजगुरू के रूप में नौटियाल ब्राह्मणों के प्रतिनिधि के रूप में कार्य कर रहे भुवन नौटियाल तथा उनके पिता देवराम नौटियाल के लेखों के अनुसार वाण से कुछ आगे रिणकीधार से चमड़े की वस्तुएँ जैसे जूते, बेल्ट आदि तथा गाजे-बाजे, स्त्रियाँ-बच्चे, अभक्ष्य पदार्थ खाने वाली जातियाँ इत्यादि राजजात में निषिद्ध हो जाते हैं। अभक्ष्य खाने वाली जातियों का तात्पर्य छिपा नहीं है। इस यात्रा में अब तक अनुसूचितजाति के लोगों की हिस्सेदारी की परम्परा नहीं रही है और राज्य सरकार की इस आयोजन में भागीदारी सीधे-सीधे न केवल सामन्ती व्यवस्था को बल्कि छुआछूत की बुराई को भी मान्यता देती है।



How to Reach

* By Air: To attend Nanda Devi Raj Jat Yatra, one has to first reach Chamoli. The closest airport is Jolly Grant Airport, at a distance of 221 kilometer.

* By Rail: The closest railway station is located at Rishikesh.

* By Road: Chamoli is connected with Haridwar,Dehradun, Nainital, Rishikesh, and Almora.

* Where to Stay: There are many small towns and villages (Namely: Kulsari, Tharali, Deval, Mundoli etc) those offer stay during Rajjat yatra. Tharali is the biggest town among these. It is a tehsil headquarter. During Rajjat Yatra district administration Chamoli also provides tents to tourist after a certain location (Usually on higher altitude location after village Wan).


Maa Nanda Devi Video Full Clip

















Thursday, 22 August 2013

Garhwali Jokes and msg


1. Gabar Aur Kaliya

gabar : teru kya holu re kaliya...

kaliya : sardar min tumhar lun khayu ch ..

gabar : murda marlu teru lun dagad rootla , saag , murga ju khai weku hisab tera buba delu.


1. Gadwali Jokes


bhai ya sungur(pig) ko byo ya murga dagdi hui.byo ka baad dui ka dui margin.

kan marin

bhai sungur mari bird flu n aur murga mari swain flu n

2. Gadwali Jokes

katrina - why are you staring at me ..?
man - kat miar dagar biya karli ..?

kat- sorry i don't understand garhwali.
man- kat will you marry me ..?

katrina - kamina holu , ullu kapatha teyar kapal phod dyn meen.

3. Gadwali Arji

To,
The Pradhanacharya
Govt. School,
Garhwal,
Sir,
baat inn ccha k school ma dil ni lagdu.,.,Sarri raat neend ni aaundi.,.,.
kileki school ma noni ghategi.,..Humari class ma 1 vi ni chh,.,jo hor
class ma chhin oh sab idgaa kharab chh.,dekhnuu ku jee ni kardu.,.
Nakhra asman kaa chhan.,.Madam v koi khaas pataka nii chha.,
Hor ni tu kuch 4 kam valiyan he rakh diyan.,.,
Aap ki bahut mherwani howali.,.,.,.
Tumharu aagyakari.,.Student union.ku Neeta




4. Master With Monu


Master:- 2 mein se 2 gye kitne rhe ?

monu: samaj me nahi aya

master: gadwali mein beta teema dui roti chan, tin dui roti khai deen. te ma kya bachi?

monu: bhuji..

5. True Facts


One A Boy Kiss A British Gal
She Says
Kiss Me Hard
Wen A Boy Kiss An American Gal
She Says
Kiss Me Soft
N Wen U Kiss A Garhwali Gal
She Says

KAIMA NI BOLI WAAA........

शराब के 5 फायदे और 1 नुक्सान



1: शराब व्यक्ति की नैसर्गिक प्रतिभा को बाहर निकालता है! जैसे कोई अच्छा डांसर है लेकिन अपनी शर्म की वजह से लोगो के सामने नहीं नाच पाता है ..दो घूंट अन्दर
जाते ही अपना ऐसा नृत्य पेश करता है कि उसके सामने माइकल जेक्सन भी पानी न मांगे..

ऐसे कई उदहारण अअपने शादी ब्याह के अवसर पर शराबियों को नृत्य करते हुए देखा होगा कोई नागिन बनकर जमीन में लोटता है तो कोई घूँघट डाल कर महिला नृत्य
पस्तुत करता है!जो शेरो शायरी और साहित्यिक बाते सामान्य अवस्था में नहीं की जाती है शराब पीने के बाद कई लोगो को बड़ी बड़ी साहित्यिक बातें,शेरो शायरी भी करते देखा गया है |

2: शराब व्यक्ति के आत्मविस्वास को कई गुना बढ़ा देती है दो घूंट अन्दर जाते ही चूहे की तरह डरने वाला डरपोक से डरपोक व्यक्ति भी शेर की तरह गुर्राने लगता है शराब पीने के बाद कई पतियों को अपनी पत्नी के आगे गुर्राते हुए देखा गया है |

3 : शराब व्यक्ति को प्रकृति के करीब लाता है दो घूंट अन्दर जाते ही शराबियो का प्रकृति प्रेम उभर कर सामने आ जाता है कई शराबी शराब का आनंद लेने के बाद ज़मीन, कीचड़, नाली आदि प्राकृतिक जगहों पर विश्राम करते पाए जाते है |

4 :शराब व्यक्ति की भाषाई भिन्नता को कम कर देता जो लोग अंग्रेजी बोलना तो चाहते है लेकिन नहीं बोल पाते है अंग्रेजी बोलने में हिचकिचाहट महसूस करते है , वे दो घूंट
अन्दर जाते ही ऐसी धारा प्रवाह अंग्रेजी बोलने लगते है कि बड़े से बड़ा अँगरेज़ भी शर्मा जाये ऐसे कई लोगो से आपका पाला पड़ा होगा |

5 : शराब व्यक्ति को दिलदार बनाती है कंजूस से कंजूस व्यक्ति भी दो घूंट अन्दर जाते ही किसी सल्तनत के बादशाह की तरह व्यवहार करने लगता है ऐसे लोगो के जेब में भले फूटी कौड़ी न हो लेकिन ये लोग ज़माने को खरीदने में पीछे नहीं हटते है |

शराब का 1 नुक्सान -: ये हमें गैरो के करीब तो लाती है लेकिन अपनों से दूर कर देती है| मुझे लगता है कि बस यही एक कारण शराब से दूरी बनाये रखने के लिए पर्याप्त है |

Wednesday, 21 August 2013


मंगतू दा की चिठि अपिरि gf कू

मेरी प्राण प्यारी

और म्यारा नौन्यालो की हूण वली ब्वे

प्रिये जो बात में गिचल नहीं बौल पाया वो में चिठ्ठी में लिख रहा हूँ

इस ख़त को ध्यान से पढना अर पेढ के नाक फूजी के फुंड मत धौल देना

आजकल तेरे ख्याल मेरे दिमाग में ऐसे चिपटे हुए हैं जैसे बच्चो की नाक पर माखे चिपटे रहते हैं

तेरे ख्याल मेरे बरमंड के गूदे को आटे की तरह ओल रहे हैं

जबसे तुमे देखा हैं कलेजे में ऐसे झाम्ज्याट पड़ रहा हैं जैसे कंडयाली के बुज्जे में रख दिया हो

अर आँखों में तिडवाल पड़ गयी हो ..

आजकल जने भी देखता हूँ तुमि तुम नज़र आते हो

ब्याली जंगल में गया था आर वख रिक बैठा था मुजे लगा की तुम अपनी जुल्फे खौल के बैठे हो

अर तुमारी लट समज कर मैंने उसकी पूछ खीच दी तुमारी कसम डार्लिंग उसने मुझे 154 kmph की रफ़्तार से अटगाया

इसलिए जब भी मुझे मिलना धौपेली बाँध के आना

ऐसा न हो की में तुम्हारी जुल्फे देखकर अटक जाऊ

क्योकि दूध का जला हुआ छाछ भी फूक फूक कर पीता हैं ................

प्याज् मेगु वेगि


ऐ म्यरा प्याज तू माणी जा,
मेहंगु वैगे तु जाणी जा,
तेरु भाव सुणीक अब रोणु ऐगे,
अब नि खयेंदु तु मैसी,
 नाराज वयीं छ: तेरि सोनिया मौसि
 ऐ म्यरा प्याज तू माणी जा,
 मेहंगु वैगे तु जाणी जा...